स्कूलों की ऑनलाइन कक्षाएं पूर्णतः प्रभावशाली क्यों नहीं ?

Online – Offline Education : मजाकिए लहज़े में मैंने कई लोगों को कहते सुना है -जो बच्चे स्कूल आकर भी नहीं पढ़ते, वे ऑनलाइन क्या पढ़ेंगे ? ये सोच वास्तविकता से ज्यादा दूरी भी नहीं रखती है। सभी को विदित है कि ज़ब स्कूलों को खोलने की अनुमति नहीं हो, जैसे कि अधिक ठंड या गर्मी में, तब ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से ही पठन -पाठन सम्भव है। जैसा कि मैं स्कूल स्तरीय शिक्षण की बात कर रहा हूँ तो मेरा स्पष्ट रूप से यह मानना है कि ऑनलाइन कक्षाएं पूर्णतः प्रभावशाली ना हैं और ना ही हो सकती हैं। मैं किस आधार पर कह रहा हूँ ?

स्कूली शिक्षक के लिए सिर्फ़ कक्षा के सामने खड़े होकर लेक्चर दे देना बेहतर शिक्षण करने का परिचायक नहीं माना जाता है। जो शिक्षक बोर्ड कार्य से फुर्सत मिलते ही पूरे कक्षा में भ्रमण करते रहता है और बच्चों के कार्यों की निगरानी करता है, उसे बेहतर शिक्षक माना जाता है। सिर्फ़ सामने खड़े होकर लेक्चर देने का काम कॉलेज शिक्षक का होता है क्योंकि उसके सामने बैठे बच्चे बड़े होते हैं। निष्कर्ष यह है कि स्कूल स्तर के बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षक के द्वारा करीब से निगरानी की जानी आवश्यक है। फिर ऑनलाइन कक्षाओं में तो शिक्षक और विद्यार्थियों के बीच ये दूरी कुछ इस कदर है कि कक्षा के दौरान बच्चों के कार्यों की निगरानी करना सम्भव ही नहीं है। यह कारण मुख्य तो है, पर सिर्फ़ इतने से ऑनलाइन कक्षाओं को पूर्णतः नाकारात्मक दृष्टिकोण से देखना अनुचित है।

Online शिक्षण व्यवस्था : फायदे और नुकसान

सबसे पहले वैसे ऑनलाइन व्यवस्था की बात करते हैं,जहाँ एकतरफा शिक्षण हो रहा है अर्थात बच्चे पढ़ने के दौरान शिक्षक से बातचीत नहीं कर पाते हैं। ऐसी कक्षाओं में देखा जा रहा है कि बच्चे बहुत ही कम रुचि दिखा रहे हैं। जहाँ हाज़िरी बनाने की बाध्यता है, वहाँ रुचिविहीन होकर भी उपस्थिति दर्ज़ कराने के उद्देश्य से अधिकतर बच्चे सक्रिय रह रहे हैं। पर जहाँ हाज़िरी की बाध्यता नहीं है वहाँ तो बच्चों की सक्रियता ना के बराबर है। यदि बात करें वैसे ऑनलाइन कक्षाओं कि जहाँ शिक्षक-विद्यार्थी वार्तालाप सम्भव है, तो ऐसी कक्षाएं व्हाट्सअप ग्रुप के माध्यम से या किसी वीडियो कॉलिंग एप्प के माध्यम से चल रही हैं। व्हाट्सअप ग्रुप में वीडियो, ऑडियो, फोटो और लिखित मैसेज के माध्यम से बच्चों से वार्तालाप करते हुए कक्षाओं का संचालन तो सम्भव हो पा रहा है, पर यहाँ भी बच्चे ईमानदारी से पढ़ रहे हैं या नहीं, इसकी पुष्टि करना मुश्किल है। कारण है कि बच्चे शिक्षक के सामने नहीं हैं। पढ़ाई गई चीजों को बच्चे ध्यान से समझ रहे हैं या नहीं, जाँच का एक ही तरीका होता है – उनसे प्रश्न पूछना।शिक्षक के द्वारा प्रश्न पूछे जाने पर सामने ना होने का लाभ उठाते हुए बच्चे पुस्तक से देखकर अथवा गूगल सर्च कर के उत्तर दे सकते हैं। अब बात करते हैं वीडियो कॉलिंग ऐप्प के माध्यम से संचालित होने वाले कक्षाओं की। मेरे ख्याल से इसे ही वास्तव में कक्षा के रूप में देखा जा सकता है, ऑनलाइन ही सही। इसमें शिक्षक – विद्यार्थी वार्तालाप भी सम्भव है और बच्चे सामने भी हैं। परंतु, यह भी पूर्णतः दोषमुक्त नहीं है। नेटवर्क की समस्या से हम सभी वाकिफ़ हैं। कभी स्पष्ट वीडियो में समस्या तो कभी स्पष्ट ऑडियो में, आप खुद समझ सकते हैं कि खराब नेटवर्क से बच्चों को पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने में निश्चित ही समस्या हो रही है।

Online और Offline व्यवस्था कितना प्रभाशाली ?

जिस परिस्थिति में स्कूल खुलना सम्भव ना हो, तब पठन – पाठन का एकमात्र साधन ऑनलाइन कक्षाएं ही हैं। अतः मैं ऑनलाइन कक्षाओं के संचालन का समर्थन करता हूँ और ऑनलाइन कक्षाओं का संचालन करा रहे प्रत्येक स्कूल के प्रयास की सराहना करता हूँ। जो स्कूल उपरोक्त वर्णित एकतरफा शिक्षण का तरीका अपना रहे हैं, उनके प्रयास का भी समर्थन करता हूँ। क्योंकि अधिक बच्चों के साथ ऐसी कक्षाओं का संचालन मुश्किल है जिसमें शिक्षक – विद्यार्थी वार्तालाप सम्भव हो। ऐसी परिस्थिति में ‘ना से हाँ भला’ के संदर्भ में तो इस कक्षा संचालन विधि को हम प्रभावशाली कहेंगे, पर दोषों को नज़रअंदाज़ करना भी मुश्किल है। अतः इसे पूर्णतः प्रभावशाली नहीं कहा जा सकता है। हाँ, बड़े बच्चों, जैसे कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए ऑनलाइन कक्षाएं प्रभावशाली हैं क्योंकि उन विद्यार्थियों को अपनी जिम्मेदारी का एहसास है।

लेखन – सन्नी सिन्हा

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