
प्रेम की परिभाषा को शब्दों में बयाँ करना आसान नहीं होता, फिर भी दिल जब भर आता है, तो एहसास खुद-ब-खुद कविता बन जाते हैं। बिहार की युवा लेखिका रानी साह की यह कविता भी ऐसी ही भावनात्मक यात्रा है – जहां प्रेम महज़ एक भावना नहीं, बल्कि जीवन का हर रंग, हर रूप बन जाता है। कभी सागर-सी गहराई, कभी पतवार-सा सहारा, कभी धूप-सी तपिश, तो कभी राधा-सा समर्पण। हर पंक्ति में प्रेम का एक नया रूप, एक नया एहसास झलकता है, जो पाठकों को न सिर्फ भावविभोर करता है बल्कि उन्हें अपने ही रिश्तों और भावनाओं की परछाइयों से जोड़ देता है। इस कविता में कवि ने शब्दों के माध्यम से उस निस्वार्थ प्रेम को दर्शाया है, जहाँ “मैं” का वजूद केवल “तू” में समा जाता है।
एहसासों को लिखूँ या लिख कर एहसास करूँ
तु हीं बता ना… तुझसे कितना प्यार करूँ
तु धरा का गहरा सागर
मैं तेरी उफ़ान बनूं
तु नदियों का लहराता कश्ती
मैं तेरी पतवार बनूं
तु हीं बता ना… तुझसे कितना प्यार करूँ
एहसासों को लिखूँ या लिख कर एहसास करूँ
तु हीं बता ना तुझसे कितना प्यार करूँ
तु फूलों का भटकता भौंरा
मैं तेरी फूलवार बनूं
तु राहों का बहका राही
मैं तेरी मुकाम बनूं
तु हीं बता ना… तुझसे कितना प्यार करूँ
एहसासों को लिखूँ या लिख कर एहसास करूँ
तु हीं बता ना… तुझसे कितना प्यार करूँ
तु चैत-जेष्ठ की चटक धूप
मैं तेरी साँझ बनूं
तु आसमां का मड़राता बादल
मैं तेरी बून्दों की छम छम राग बनूं
तु हीं बता ना… तुझसे कितना प्यार करूँ
एहसासों को लिखूँ या लिख कर एहसास करूँ
तु हीं बता ना… तुझसे कितना प्यार करूँ
तु हर गोपियों का कृष्ण कन्हाई
मैं तेरी प्यारी बृषभान बनूं
तु प्रेम पूर्ण मुरली धर मुरारी
मैं तेरी मुरली की तान बनूं
तु हीं बता ना… तुझसे कितना प्यार करूँ
एहसासों को लिखूँ या लिख कर एहसास करूँ
तु हीं बता ना… तुझसे कितना प्यार करूँ
तु हीं बता ना… तुझसे कितना प्यार करूँ
– रानी साह