स्वामी विवेकानंद भारत के एक अनमोल रत्न है जिन्होंने विश्व के पटल पर भारत देश का नाम ऊंचा किया है। अपनी बेबाक कथन शैली से उन्होंने न सिर्फ समाज को जीने की एक नई दिशा प्रदान की बल्कि देश और दुनिया के लोगों को एक सूत्र में बांधने का काम किया है। 12 जनवरी 1863 को बंगाल की राजधानी कोलकाता में जन्में स्वामी विवेकानंद जी का बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। ईश्वर को जानने की इच्छा ने इन्हें संत समाज की ओर अग्रसर किया।
किसने दिया नरेंद्र नाथ को स्वामी विवेकानंद का नाम ?
राजपूताना के खेतड़ी नरेश ने नरेंद्रनाथ को स्वामी विवेकानंद का नाम दिया था। ये कहानी उस वक्त की है जब स्वामी जी को अमेरिका जाना था। उनके पास अमेरिका जाने के पैसे नहीं थे लेकिन उनका सहयोग राजपूताना के खेतड़ी नरेश ने किया। उन्होंने स्वामी की यात्रा का पूरा खर्च उठाया। स्वामी विवेकानंद ने संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में हिंदू दर्शन के सिद्धांतों का प्रसार किया।
किसने कराया विवेकानंद को भगवान के दर्शन ?
अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से विवेकानंद जी की पहली मुलाकात साल 1881 में कलकत्ता के दक्षिणेश्वर काली मंदिर में हुई। उन्होंने ही विवेकानंद जी को अपने हृदय में भगवान के दर्शन करने की शिक्षा दी। रामकृष्ण जी ने ही विवेकानंद जी को भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। विवेकानंद जी ने भी अपने गुरु के द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चल कर ईश्वर की उपासना की और दीन दुखियों की मदद करने में अपने जीवन को समर्पित कर दिया। उन्होंने भारतीय संस्कृति और आध्यात्म का प्रसार देश ही नहीं विदेशों में भी किया।
कैसे हुई रामकृष्ण मिशन की स्थापना ?
विवेकानंद जी ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के विचार और उनकी शिक्षा को पूरा दुनिया तक पहुंचाने के लिए साल 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इसका मुख्यालय पश्चिम बंगाल के हावड़ा ज़िले के बेलूर में है जहां लोगों को मोक्ष और संसार के हित की शिक्षा दी जाती है।
युवा पीढ़ी के लिए क्यों खास है स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानन्द जी का सादा जीवन और सात्विक विचार आज के युवा पीढ़ी के लिए आदर्श का पर्यायवाची है। उन्होंने युवा पीढ़ी को अपने लक्ष्य पर हमेशा एकाग्र रहने की सीख दी है। विवेकानंद जी का मानना है कि एकाग्रता ही सफलता की कुंजी है। युवाओं को अपने चरित्र निर्माण पर ध्यान देना चाहिए।
शोध एवं लेखन – बसुन्धरा कुमारी