Subhash Chandra Bose jayanti 2025 : नेताजी ने क्यों छोड़ी प्रशासनिक अधिकारी की नौकरी ?

“सफल होने के लिए आपको अकेले चलना होगा,
लोग तो तब आपके साथ आते है,
जब आप सफल हो जाते हैं।”

– नेताजी सुभाष चंद्र बोस

भारत देश के वीर सपूतों में शामिल नेताजी सुभाष चन्द्र बोस एक महान क्रांतिकारी और देशभक्त थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन देश की रक्षा और आज़ादी के लिए निछावर कर दिया। हमेशा ‘आज़ादी’ और ‘निडरता’ जैसे शब्दों को अपने शब्दकोश में शामिल करने वाले सुभाष चंद्र बोस जी ने कभी पराधीनता को स्वीकार नहीं किया। 23 जनवरी, 1897 को ओडिशा के कटक में जन्मे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी का जीवन युवा पीढ़ी के लिए एक आदर्श है।

किसने दिया सुभाष जी को ‘नेताजी’ की उपाधि ?

जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने पहली बार सुभाष चन्द्र बोस को ‘नेताजी’ कहकर संबोधित किया था। आज़ाद भारत के सपने को साकार करने के लिए सुभाष जी ने हिटलर से साल 1942 में मुलाकात की थी, लेकिन हिटलर ने उनके इस प्रस्ताव में दिलचस्पी नहीं दिखाई।

नेताजी ने क्यों छोड़ी प्रशासनिक अधिकारी की नौकरी ?

विद्यालय के दिनों में एक मेधावी छात्र के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले सुभाष चंद्र बोस ने इंग्लैंड की क्रैंब्रिज यूनिवर्सिटी से सिविल सेवा परीक्षा पास की थी। लेकिन भारत को अंग्रेजों की हुकूमत से आज़ाद कराने के लिए उन्होंने उसी वक्त इंग्लैंड में प्रशासनिक सेवा की प्रतिष्ठित नौकरी छोड़ दी।

“तुम मुझे खून दो और मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा”

– नेताजी सुभाष चंद्र बोस

आज़ाद हिन्द फौज में निभाई अहम भूमिका

क्रांतिकारी विचारों के परवक्ता सुभाष चन्द्र बोस ने साल 1943 में भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) या आज़ाद हिंद फ़ौज का नेतृत्व संभाला, जिसे जनरल मोहन सिंह ने स्थापित किया था। नेताजी के देह वाक्य “तुम मुझे खून दो और मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा” ने हजारों लोगों को आज़ाद हिन्द फौज में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।

शोध एवं लेखन – बसुन्धरा कुमारी

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