
“मैं सही निर्णय लेने में विश्वास नहीं रखता।
मैं निर्णय लेता हूं और फिर उन्हें सही बनाता हूं।”
“शक्ति और धन मेरे दो मुख्य हित नहीं हैं।”
साढ़े तीन हजार करोड़ के मालिक रहे रतन टाटा के कहे शब्द उनके संपूर्ण जीवन परिचय के लिए उपयुक्त हैं।
टाटा कंपनी के बने चेयरमैन
28 दिसंबर 1937 को मुंबई में जन्मे रतन टाटा ने कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से आर्किटेक्चर एंड स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की थी। उन्होंने अपनी करियर की शुरूआत अमेरिका में आर्किटेक्ट के रूप में की थी। बाद में अपनी दादी के बुलाने पर वे भारत आगए। साल 1962 में वे अपने परदादा जमशेदजी टाटा की कंपनी में सहायक के रूप में जुड़े। आगे चलकर अपनी काबिलियत और जुनून के कारण रतन टाटा कंपनी के चेयरमैन भी बने।

कमाई का आधा हिस्सा ‘रतन टाटा ट्रस्ट’ में
एक सफल उद्योगपति रतन टाटा ने अपने जीवन में जितनी बुलंदियों देखी उतनी ही खामोशीयों के भी गवाह बने। अपने जीवन में उन्होंने हर उस इंसान की खामोशी को समझा जो जीवन में संघर्ष से जूझ रहे है। इसके लिए उन्होंने अपनी कमाई का आधा से ज्यादा हिस्सा दान में दिया। ‘रतन टाटा ट्रस्ट’ इसका उदाहरण है।
मुस्कुराहट ने कभी नहीं छोड़ा साथ
रतन टाटा ने अपनी मुस्कान भरे चेहरे के लिए हमेशा सुर्खियां बटोरी। एक किस्सा इसे भी जुड़ा हुआ है :- करीब दो दशक से अधिक समय तक टाटा के घर में अख़बार देने वाले हॉकर हरिकेश सिंह रतन टाटा की मुस्कुराहट के पहले दर्शक है। वे कहते हैं “रतन मुझसे करीब 14 अख़बार लेते थे और जब मैं उन्हें ये देता तो उनके चहरे पर एक अनूठी मुस्कान आ जाती थी, जैसे उन्हें कोहिनूर मिल गया हो।”

शोध एंव लेखन – बसुन्धरा कुमारी