
एक दिन मोहन प्रभात ही पधारे, उन्हें
देख फूल उठे हाथ पाँव उपवन के।
खोल खोल द्वार फूल घर से निकल आए,
देख के लुटाए निज कोष सुबरन के॥
– रामनरेश त्रिपाठी
हिंदी भाषा के महान कवियों में शामिल पंडित रामनरेश त्रिपाठी पूर्व छायावाद युग के कवि थे। इन्होंने ने अपनी कविताओं में देश-प्रेम, मानव- सेवा और प्रकृति जैसे विषयों को विशेष भूमिका दी थी। त्रिपाठी जी अपनी कविताओं में खड़ी बोली का प्रयोग करते थे। रामनरेश त्रिपाठी का जन्म 4 मार्च 1889 को उत्तरप्रदेश के जिला जौनपुर के अंतर्गत कोइरीपुर ग्राम में हुआ था। इन्होंने कविता से इतर कहानी, नाटक, निबंध और लोक – साहित्य पर भी अपनी कलम उठाई और समाज को नई चेतना से भर दिया।
अपने दिन रात हुए उनके
क्षण ही भर में छवि देखि यहाँ।
सुलगी अनुराग की आग वहाँ
जल से भरपूर तड़ाग जहाँ॥
किससे कहिए अपनी सुधि को
मन है न यहाँ तन है न वहाँ।
अब आँख नहीं लगती पल भी
जब आँख लगी तब नींद कहाँ॥
– रामनरेश त्रिपाठी
स्कूली शिक्षा से इतर भाषाओं में दक्षता हासिल
कृषि परिवार में जन्मे रामनरेश त्रिपाठी केवल 9वीं कक्षा तक ही शिक्षा अर्जित कर पाए। परिवार की आर्थिक स्थिति कमज़ोर होने के कारण वो आगे की शिक्षा पूरी नहीं कर सके। लेकिन पढ़ने और सीखने का जुनून कुछ ऐसा रहा की बंगाली, गुजराती, हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी आदि भाषाओं में दक्षता हासिल करने में वो जरूर सफल रहे।

कविता बनी ‘महाभारत’ धारावाहिक की पहचान
पंडित रामनरेश त्रिपाठी की लिखी हुई, “हे प्रभो आनन्ददाता ज्ञान हमको दीजिए ….” जैसा प्रेरणादायी कविता ने प्रार्थना के रूप में हर विद्यालय के प्रार्थना गीत में अपनी जगह बनाई। इतना ही नहीं इसी कविता को बी आर चोपड़ा ने अपने ‘महाभारत’ धारावाहिक में भी शामिल किया। जब ऋषि द्रोणाचार्य कोरव और पांडव की शस्त्र – शिक्षा शुरू करते है, तब उनके शिष्य इसी कविता को याद कर ईश्वर से प्रार्थना करते है।

आधुनिक हिंदी साहित्य को किया समृद्ध
रामनरेश त्रिपाठी जी ने अपने जीवन काल में तकरीबन 100 किताबों की रचना की थी। उन्होंने अपनी लेखनी से हिंदी साहित्य को नए मुकाम तक पहुंचाया था। खराब स्वास्थ्य के कारण 16 जनवरी 1962 को 72 वर्ष की आयु में हिन्दी साहित्य के पुरोधा रहे रामनरेश त्रिपाठी हमे अलविदा कह गए।

शोध एवं लेखन – बसुन्धरा कुमारी