
भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा को सभी जानते है। अंतरिक्ष की दुनिया में भारत का नाम अग्रसर करने वालों में राकेश शर्मा भी शामिल है। 13 जनवरी 1949 को पंजाब के पटियाला में जन्में राकेश को बचपन से ही एक कुशल पायलट बनने का ख़्वाब था। अपने इसी ख़्वाब को पूरा करने के लिए उन्होंने महज़ 21 साल की उम्र में भारतीय वायु सेना में बतौर पायलट के रूप में अपनी सेवा देनी शुरू की।

कैसे पूरा किया पायलट से अंतरिक्ष यात्री तक का सफर
राकेश शर्मा भारतीय वायु सेना में सुपरसोनिक जेट लड़ाकू विमान उड़ाया करते थे। अपनी मेहनत और नियमित अभ्यास के फलस्वरूप राकेश बहुत कम उम्र में ही वायुसेना के बेहतरीन पायलट बन चुके थे। साल 1984 की मौजूदा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों को शुरू करने के लिए प्रयासरत थी। अपने इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए वो सोवियत संघ से मदद ले रही थी। राकेश शर्मा और उनके हमसाथी रवीश मल्होत्रा उन 50 फाइटर पायलटों में से थे जिन्हें टेस्ट में से चुना गया था। इन दोनों को रूस में ट्रेनिंग के लिए भेज दिया गया। ट्रेनिंग के दौरान राकेश को बताया गया की वह अंतरिक्ष में जाएंगे और उनके मित्र रवीश मल्होत्रा बैकअप के रूप में होंगे। 3 अप्रैल 1984 को एक सोवियत रॉकेट में राकेश शर्मा और दो रूसी अंतरिक्ष यात्रियों, यूरी माल्यशेव और गेनाडी सट्रेकालोव अंतरिक्ष के लिए रवाना हो गए। अंतरिक्ष में जाने वाले राकेश 128 वें व्यक्ति थे।
क्यों कहा था राकेश ने “सारे जहां से अच्छा…?”
उस जमाने में भारत का अंतरिक्ष में जाना एक खूबसूरत पल था और इसके गवाह थे राकेश शर्मा। उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब राकेश जी से ये पूछा कि अंतरिक्ष में से भारत कैसा दिख रहा है ? राकेश जी ने कहा कि “सारे जहां से अच्छा…”। यह मोहम्मद इक़बाल का एक कलाम है जो राकेश अपने स्कूल के दिनों में हर रोज़ राष्ट्रीय गान के बाद गाया करते थे। उनके अनुसार अंतरिक्ष से भारत बहुत मनमोहक दिख रहा था।

अंतरिक्ष यात्रा के बाद कैसे बदली ज़िंदगी
अंतरिक्ष की यात्रा से लौटने के बाद राकेश जी का जीवन किसी अभिनेता की तरह हो गया था। लोग उनसे मिलने को बेताब रहते थे। उनके प्रशंसकों का उनसे सिर्फ यही सवाल रहता था कि क्या उन्होंने अंतरिक्ष में भगवान को देखा है? इसके जवाब में राकेश मुस्कुरा के कहते कि नहीं देखा है।
शोध एवं लेखन – बसुन्धरा कुमारी