
क्या बिहार से ही है बनारसी पान की शान ? क्या वोकल फॉर लोकल से कृषि अर्थव्यवस्था में आएगी जान ? क्या लिट्टी – चोखा अब वैश्विक पहचान के लिए है तैयार ? ऐसे ही कई सवालों के जवाब को समेटे, कृषि के साथ सामाजिक और भगौलिक परिदृश्य को अपनी आँचल में लिए, प्रमिला पत्रिका के आठवां अंक में जीआई टैग और उसकी भव्यता पर विश्लेषणात्मक बात की गई है। पत्रिका के साथ जुड़े युवा लेखक रितेश आदर्श, प्रेम शंकर और लेखिका आकांक्षा राज ने अपनी शब्दों की जागृति से पाठकों का ध्यान पत्रिका की तरफ आकर्षित किया है। पत्रिका के आठवें अंक के ज़रिए जीआई टैग से जुड़े विभिन्न मुद्दे जैसे जीआई टैग किसी वस्तु या उत्पाद को क्यों दिया जाता है ? इसकी वैधता कितनी होती है ? बिहार का एक पारंपरिक व्यंजन लिट्टी चोखा आखिर कैसे वैश्विक पहचान बनता जा रहा है। साथ ही मिट्टी के बने बर्तन, मांझी (ताजपुर) का एटम बम मिठाई जैसे कई और व्यंजनों और वस्तुओं को जीआई टैग दिए जाने के ऊपर विस्तृत बात की गई है।
सालों से दंश झेलते बिहार को लेकर बनी गलत धारणा से इतर कैसे बिहार से जुड़े कई पदार्थ और वस्तु दूसरे राज्यों की शान बन गए ? कैसे बिहार में सिंचित हुआ बनारसी पान पड़ोसी राज्य की पहचान बन गया ? ऐसे कई विषयों को प्रमिला पत्रिका अपनी रचनात्मक शैली से दिखाने का प्रयास करती है। साथ ही डॉ. ज्ञानेश्वर गुंजन की लिखी भोजपुरी गीत, प्रखर पुंज, रानी कुमारी, अनुराधा तिवारी, अनीश कुमार देव के लिखे कविता और ग़ज़ल से पत्रिका की साहित्यिक पृष्ठभूमि पाठकों को रमणीक यात्रा पर लेकर जाती है। पत्रिका के एक पहलू में आर्टिस्ट पंकज कुमार की कुछ कलाकृति को भी दिखाया गया है। पत्रिका के संपादक अभिनंदन द्विवेदी का कहना है कि पत्रिका के हर अंक के ज़रिए एक नवीन बिहार दिखाने का प्रयास रहता है। हमारी हमेशा से यह कोशिश है कि पत्रिका में वैसे मुद्दों को स्थान दिया जाए जो सीधा जन जागरण से जुड़ा हो, साथ ही अपनी मिट्टी, अपनी मातृभाषा भोजपुरी पर रचनात्मक काम किया जा सके।