“मेरा फरमान आज भी इस शहर का कानून है, मैं जब भी करता हूं, इंसाफ ही करता हूं।”
फिल्म- नरसिम्हा (1991)
बुलंद और बेजोड़ आवाज़ के जादूगर ओम पुरी एक प्रसिद्ध अभिनेता थे। उनकी एक्टिंग का करिश्मा विदेशों में भी खूब चला। ब्रिटिश और अमेरिकी सिनेमा में किए गए उनके काम की सराहना आज भी होती है। उन्होंने अपने जीवन काल में करीब 300 फिल्मों में काम किया। सर्वश्रेष्ठ अभिनय के लिए उन्हें दो बार राष्ट्रीय पुरस्कार से भी नवाजा गया। इतना ही नहीं विश्व सिनेमा में उनके योगदान के लिए उन्हें 89वें अकादमी पुरस्कार के स्मृति खंड में सम्मानित किया गया।
संघर्ष रहा बचपन का साथी
ओम पुरी का बचपन कुछ इस तरह बीता की उसमें मुस्कुराहट की जगह ही नहीं थी। उनके पिता जी रेलवे में कर्मचारी थे। सीमेंट चोरी के आरोप में उन्हें जेल जाना पड़ा। इसके बाद घर चलाने की पूरी जिम्मेदारी ओम पुरी और उनके भाई वेद प्रकाश पुरी पर आ गई। रेलवे में कुली का काम करने से लेकर कोयला उठाने तक, ओम पुरी ने ये सारे काम किए।
NSD से FTII तक का सफर
ओम पुरी ने काम के साथ अपनी पढ़ाई को भी पूरा किया। अपनी अभिनय को कुशल बनाने के लिए उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, दिल्ली में दाखिला लिया। यहां उनकी दोस्ती नसीरुद्दीन शाह से हुई। नसीरुद्दीन के ही कहने पर ओम पुरी फिल्म इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, पुणे में पढ़ने के लिए गए। ओम पुरी उन चुनिंदा कलाकारों में से रहें जिन्होंने NSD और FTII जैसे बड़े संस्थान से सिनेमा का अध्ययन किया। इस सूची में उनके दोस्त नसीरुद्दीन शाह का भी नाम है। विलेन के किरदार में अपनी पहचान बनाने वाले अमरेश पुरी एक समय ओम पुरी के करीबी दोस्त रहे थे। अक्सर ‘पुरी’ सरनेम के कारण उनके चाहने वाले दोनों को भाई समझते थे।
“यकीन को हमेशा वक्त के पीछे चलना चाहिए, आगे नहीं।”
फिल्म- कुर्बान (2009)
ओम पुरी को अपने अभिनय पर यकीन था। उन्होंने सही वक्त पर सही फिल्मों का चुनाव किया। भाग्य ने साथ दिया और वो हिंदी सिनेमा में एक मिसाल कायम कर सके। श्याम बेनेगल की ‘आरोहण’ हो या गोविंद निहलानी की ‘अर्ध सत्य’, हर फिल्म में उन्होंने अपनी जबरदस्त अदाकारी से लोगों का दिल जीता। परिणाम स्वरूप इन्हीं दोनों फिल्मों के लिए उन्हे बेस्ट ऐक्टर का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। ओम पुरी अपनी सफलता को लेकर अक्सर ये कहते कि अगर चाय बेचने वाला एक 6 साल का लड़का ओम पुरी बन सकता है तो “ज़िंदगी में कुछ भी हो सकता है…।”
शोध एवं लेखन – बसुन्धरा कुमारी