Manoj Kumar Death: फिल्मों में देशभक्ति का प्रतीक बने मनोज कुमार, जानें ‘भारत कुमार’ बनने की कहानी

Manoj Kumar Death: है प्रीत जहाँ की रीत सदा, मैं गीत वहाँ के गाता हूँ, भारत का रहने वाला हूँ, भारत की बात सुनाता हूँ…। हिंदी सिनेमा के मशहूर अभिनेता और निर्देशक मनोज कुमार 87 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने फिल्मों में अपनी दमदार एक्टिंग और देशभक्ति वाले किरदारों के लिए बहुत प्यार और सम्मान कमाया था। वे “भारत कुमार” के नाम से भी जाने जाते थे। उनका निधन हिन्दी सिनेमा के लिए एक बड़ी क्षति है, क्योंकि वे सिनेमा की दुनिया के एक अहम हिस्सा थे।

कैसे हुई फिल्मी सफर की शुरुवात ?

1960 और 1970 के दशक में उनकी फिल्मों ने उन्हें सुपरस्टार बना दिया। मनोज कुमार ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत 1957 में फिल्म “फेलीशिया” से की थी, लेकिन उन्हें असली पहचान 1965 में फिल्म “कवि” से मिली। उनकी फिल्मों में हमेशा देशभक्ति का संदेश होता था, जो लोगों के दिलों को छू जाता था। उनकी सबसे प्रसिद्ध फिल्में “उपकार”, “शहीद”, “पूरब और पश्चिम” और “हसीना मान जाएगी” थीं। इन फिल्मों में उनके अभिनय ने उन्हें लोगों का दिल जीतने में मदद की।

भारत सरकार ने कई पुरस्कार से नवाजा ?

मनोज कुमार को उनके काम के लिए कई सम्मान भी मिले थे। उन्हें भारत सरकार द्वारा “पद्मश्री” और “पद्मभूषण” जैसे बड़े पुरस्कार दिए गए। वे सिर्फ अभिनेता नहीं, बल्कि एक अच्छे निर्देशक और निर्माता भी थे। उनके द्वारा बनाई गई फिल्में आज भी लोगों को याद हैं। मनोज कुमार की फिल्मों ने देश में एक सकारात्मक बदलाव लाने का काम किया। वे सिनेमा के जरिए समाज को जागरूक करने का प्रयास करते थे। उन्हें खास तौर पर उनके “भारत कुमार” के किरदार के लिए जाना जाता है। उनकी फिल्मों में उनके देशप्रेम और राष्ट्रीय भावना को प्रमुखता से दिखाया गया।

मनोज कुमार कैसे बने ‘भारत कुमार’ ?

मनोज कुमार ने जब “शहीद” (1965) फिल्म में भगत सिंह का किरदार निभाया, तो उन्होंने न केवल एक महान क्रांतिकारी की भूमिका निभाई, बल्कि फिल्म के जरिए देश के लिए उनके बलिदान की अहमियत को भी दर्शाया। इसके बाद 1967 में आई फिल्म “उपकार” में उनके अभिनय ने उन्हें “भारत कुमार” की उपाधि दिलवाई। इस फिल्म में उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति का किरदार निभाया था, जो समाज और देश के लिए अपने कर्तव्यों को निभाता है। फिल्म में उनके संवाद, “कोई देश महान नहीं होता, लोग उसे महान बनाते हैं” आज भी लोगों के दिलों में बसा हुआ है। इसके बाद “पूरब और पश्चिम” (1970), “हसीना मान जाएगी” (1968) जैसी फिल्मों में भी उनके देशभक्ति और समाजिक मुद्दों पर आधारित किरदारों ने उन्हें “भारत कुमार” का दर्जा दिलवाया। मनोज कुमार की फिल्मों में एक गहरी सामाजिक और राष्ट्रीय जिम्मेदारी थी, जो दर्शकों को जागरूक करती थी। उनके निधन से सिनेमा इंडस्ट्री को एक बड़ा नुकसान हुआ है। हालांकि, उनकी यादें और उनकी फिल्में हमेशा हमारे साथ रहेंगी।

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