
होली पर्व जिसे रंगोत्सव के नाम से भी जानते है, अपनी उमंग और उत्साह के लिए देश-विदेश तक प्रख्यात है। होली पर्व अध्यात्मिक और सामाजिक दोनों ही दृष्टिकोण में एक खास पर्व है। भगवान विष्णु का अपने भक्त प्रहलाद के प्रति प्रेम होली पर्व को एक अध्यात्मिक दृष्टिकोण देता है तो वहीं दूसरी तरफ सभी धर्म और संप्रदाय के लोगों का मिल जुलकर एक दूसरे को रंग और गुलाल लगाकर खुशियां मनना इसे एक सामाजिक त्यौहार बनाता है। पिछले कुछ सालों से होली पर्व का दो दिनों में बट जाना समाज के बदलते दृष्टिकोण को दर्शाता है जिसमें एकता और एकजुटता जैसे शब्द अपनी जगह खोज रहे है। कैसे तिथि और दिनों का संजोग ना बनना त्योहारों पर असर डालता है और एक आम इंसान के लिए इसके क्या मायने है। इन्हीं सभी विषयों पर रचनाकोश की टीम ने बातचीत की संस्कृत शिक्षक गोपाल पाठक से और आप तक सही जानकारी पहुंचाने की कोशिश की है।

होली पर्व किन पहलुओं पर बट जाता है ?
संस्कृत शिक्षक गोपाल पाठक ने बताया की होली पर्व का दो दिन होना कैलेंडर और पंचांग के तिथि और दिनों के असंयोग के कारण है। कैलेंडर के हिसाब से जिस दिन जो पर्व मनना है वो उस दिन मनाया जायेगा लेकिन पंचांग ये कहता है की सूर्य उदय के समय जो तिथि होगी उस हिसाब से उस पर्व के दिन को सुनिचित किया जाएगा। कैलेंडर के हिसाब से फाल्गुन महीने की पूर्णिमा को होलिका दहन होता है और अगले दिन होली खेली जाती है लेकिन पंचांग के हिसाब से होली चैत महीने के प्रथम दिन मनाई जाती है। सूर्य उदय तिथि में अगर चैत महीने की प्रतिपदा (प्रथम) तिथि आती है तो ही होली खेली जाएंगी। लेकिन सनातन धर्म सभी मतों का सम्मान करता है और जिन्हें जिस दिन होली मनानी है वो इसके लिए स्वतंत्र हैं। होली का त्यौहार उत्साह और उमंग का त्यौहार है। इसमें तिथि उतनी अहमियत नहीं रखती क्योंकि यह कोई व्रत नहीं है।
साल 2025 में तिथि की गणना होली पर्व के लिए कैसी है ?
इस साल की बात की जाए तो गुरुवार यानी 13 मार्च को सूर्य उदय में पूर्णिमा तिथि है इसलिए होलिका दहन इस दिन होगा और अगले दिन चैत महीने के प्रतिपदा तिथि को होली मनाई जाएगी। शिक्षक गोपाल पाठक ने बताया की होली कभी भी पूर्णिमा तिथि में नहीं मनाई जाती है इसलिए होली पर्व का सही दिन 15 मार्च है। वसंत ऋतु प्रथम दिवस स्वागुनः प्रतिपदा रंगोत्सव: इसका अर्थ है की वसंत ऋतु के पहले दिन प्रतिपदा तिथि में रंगोत्सव का त्यौहार मनाया जाता है।

क्षेत्रीय और सामाजिक दृष्टिकोण की अहमियत होली पर्व में कितनी है ?
इस विषय पर गोपाल पाठक ने हमें बताया की हर जगह की अपनी मान्यताएं और दृष्टिकोण है। उत्तर प्रदेश के काशी में पूर्णिमा को होलिका दहन के बाद होली मना ली जाती है जिसके बाद सर्वत्र होली का पर्व मनाया जाता है। वहीं कुछ जगहों पर एक दिन का विश्राम (ठहराव) रखा जाता है जिसे मरजाद कहते है। इसके अगले दिन होली मनाई जाती है।
(बसुन्धरा कुमारी की रिपोर्ट)