
ये दौर अब इतिहास की राह में कहीं बाँट जोह रहा होगा ! फिर कोई ऐसा आएगा, जो किस्मत की लकीर को भी अपने शब्दों की वेग से पराजित कर देगा। कोई आएगा, जो आकाश की ऊंचाई को ललकारेगा। कोई आएगा, जो धूल पड़ी व्यवस्था पर इतराने वाले रहनुमाओं को अपने क्रांतिकारी शब्दों से कटघरे में खड़ा करेगा। युग बदलता है, हर दशक अपने इतिहास को संजोना जानता है, लेकिन ये वक्त की नज़ाकत है कि फिर वैसा कोई हुआ ही नहीं, फिर कोई ‘महाकाव्य’ हुआ ही नहीं, फिर कोई ‘दुष्यंत’ हुआ ही नहीं।
ऐसा लगता है कि उड़ कर भी कहाँ पहुँचेंगे
हाथ में जब कोई टूटा हुआ पर होता है
सैर के वास्ते सड़कों पे निकल आते थे
अब तो आकाश से पथराव का डर होता है
– दुष्यंत कुमार

वीर रस के पुरोधा, शब्दों में क्रांति का गोला, पेट, पाँव और पत्थर को एक सूत्री धागे में पिरोने का शिल्प लिए ‘दुष्यंत कुमार’ ने युवा दिलों की धड़कन में तबाही मचाई है। उत्तर प्रदेश की भूमि अपने इस लाल के लिए इतराती जरूर होगी। जन्म उत्तर प्रदेश में हुआ, लेकिन व्यक्तित्व को पूरे देश ने अपने सीने में जगह दी। नाम में क्या रखा है, त्यागी हो या परदेशी, बनना तो दुष्यंत ही था। कहानी कुछ ऐसी है कि असल नाम दुष्यंत कुमार ‘त्यागी’ था, जब काव्य लेखन शुरू किया तो नाम दुष्यंत कुमार ‘परदेशी’ हो गया। बहरहाल तकदीर में पहचान की परिभाषा तो कुछ और ही लिखी थी।
कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबीअ’त से उछालो यारों!
– दुष्यंत कुमार
‘दुष्यंत’ साहब के शब्द कार्यक्रमों, संघोष्ठी इत्यादि जगहों पर मंच की शोभा बनते गए। कलम जब पहचान बनने को उतारू हो, तब नाम भी अपनी शोहरत ढूंढ लेती है। शायद एक साहित्यकार की उपलब्धि भी इसे में है, जब हर जुबां ये पुकारता चले –
“सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए !!
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए !!”
– दुष्यंत कुमार

दुष्यंत कुमार के लिखे क्रांति की कविताएं एक लंबे अरसे तक उनके पहचान की प्रतिबिंब बनी रही। इसके इतर सहजता, सादगी के साथ सामाजिक भावनाओं को भी उन्होंने शब्द दिया, जो व्यवस्था से असंतोष जनता की आवाज़ बनी। हमने इस लेख की शुरुवात में पहले ही लिखा था, हर दशक अपना इतिहास संजोना जानती है। लोकतांत्रिक देश में दुष्यंत की आवाज़ तब भी बुलंद थी जब देश इमरजेंसी रूपी वटवृक्ष की छाव तले खड़ा था। दुष्यंत कुमार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने की 70 और 80 के दशक में रहें। 17 दिसंबर 2024, वो शाम जब लोकतांत्रिक देश के सदन में दुष्यंत साहब की लिखी पंक्तियाँ राजनीति का केंद्र बनती दिखीं। गृहमंत्री अमित शाह देश के संविधान को अपनाने की 75वीं वर्षगांठ पर राज्यसभा में संबोधित कर रहे थे। गृहमंत्री ने कहा-
“एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है,
आज शायर यह तमाशा देखकर हैरान है,
कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए,
मैंने पूछा नाम तो बोला कि हिंदुस्तान है… “
– दुष्यंत कुमार
शोध एंव लेखन – अभिनंदन द्विवेदी