
सृष्टि की एक सच्चाई के आगे हर कोई नतमस्तक है। सबका समय निर्धारित है, लेकिन कुछ नाम समय की उस डोर को तोड़ निकल दुनिया में अपने काम और विनम्रता का अद्भुत परिचय देते हैं। उन्हीं में से एक नाम थे पुष्पेंद्र पाल सिंह, ‘पी पी सर’ नाम से मशहूर, पत्रकारिता जगत के भीष्म पितामह। 6 मार्च 2023, दिन सोमवार, पत्रकारिता जगत सदमे में था। तब कैफ़ी आज़मी की लिखीं दो पंक्तियाँ कुछ यूं याद आतीं हैं की रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई, तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई।

आँखें फिर आज नम थीं जब MCU के पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. संजीव गुप्ता ने सभागार में अतीत के पन्नों को पलटते स्व. पी.पी. सिंह की यादों को अंतर्मन में स्थान दिया। स्वर्गीय श्री पुष्पेंद्र पाल सिंह की श्रद्धांजलि सभा में डॉ. गुप्ता ने बताया कि पीपी सर जितने अच्छे शिक्षक थे, उतने ही बेहतर काउंसलर और मददगार भी थे। उन्होंने कभी समय देखकर ड्यूटी नहीं की। पी पी सर अपने स्टूडेंट के लिए हमेशा उपलब्ध रहते थे। डॉ. गुप्ता ने कहा कि पुष्पेंद्र सर के स्टूडेंट्स पूरी दुनिया के मीडिया हाउस में आज भी माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय का नाम रौशन कर रहे हैं। श्रद्धांजलि सभा में उपस्थित सप्रे संग्रहालय के संस्थापक निदेशक पदमश्री विजयदत्त श्रीधर ने पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए मीडिया पुस्तकें विशेष तौर पर पीपी सर के पुण्य स्मरण में विभाग को भेंट स्वरूप प्रेषित की।

कौन थे पुष्पेंद्र पाल सिंह ?
पुशपेंद्र पाल सिंह, जिन्हें “पीपी सर” के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रमुख भारतीय पत्रकार और शिक्षक थे, जिनका योगदान मध्य प्रदेश में पत्रकारिता और मीडिया शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण था। पीपी सर ने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल में पत्रकारिता विभाग के प्रमुख के रूप में कार्य किया। उनका कार्यकाल 2000 के दशक की शुरुआत से 2015 तक रहा और इस दौरान उन्होंने पत्रकारिता के विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने के लिए कई कदम उठाए। इसके अलावा, वे छात्रों के रोजगार के अवसरों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।
विरासत आज भी प्रेरणा का स्रोत
पीपी सर ‘रोज़गार और निर्माण’ नामक एक पत्रिका के संपादक भी थे, जो रोजगार और विकास के मुद्दों पर केंद्रित थी। उनके संपादकीय कार्य ने समाजिक और आर्थिक मुद्दों पर गहरी समझ को प्रदर्शित किया, जिसका उद्देश्य पाठकों को सूचित और सशक्त बनाना था। शैक्षिक कार्यों के अलावा, पीपी सर ने उभरते पत्रकारों को मार्गदर्शन देने, रोजगार के अवसर प्रदान करने और सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने में भी योगदान दिया। वे न केवल छात्रों के अकादमिक विकास में, बल्कि उनके व्यक्तिगत जीवन में भी मदद करते थे। पीपी सर की विरासत आज भी प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है, जो शिक्षा, मार्गदर्शन और भारतीय पत्रकारिता के विकास में समर्पित जीवन को दर्शाती है।