अर्जुन… अर्जुन है, असमंजस में तात ! मैं न अस्त्र उठाऊँगा: रानी कुमारी

rani kumari Poem

अर्जुन हैं, असमंजस में तात्!
मै न अस्त्र उठाऊगाँ
हत्ताश होकर गिरा है,
योध्दा रण मे मैं कैसे टिक पाऊगाँ ।
प्रतिव्दन्दी है रिश्ते मेरे
मैं रिश्तों की बलि न चढाऊगाँ
गुरु वध पाप है, गुरु वध कलंक न, मैं कमाऊगाँ।
जाने दो जो जाएगा सर्वस
मैं न अब हक का हाथ बढाऊँगा
धरा की किसी कोने मे,
पाण्डव कुटी बनाऊँगा
मैं जीता तो भी हारा, मैं हारा तो भी हारा,
भ्राता संग हस्तिनापुर ही छोड़ जाऊँगा ।
अर्जुन है असमंजस मे, तात् !
मैं न अस्त्र ऊठाऊँगा
हत्ताश होकर गिरा है योध्दा
रण में मैं कैसे टिक पाऊँगा ।
कृष्ण ने तब मौन तोड़ा
हे पार्थ! तुम क्यों मार्ग से भटकते हो
विपक्षी बनकर खड़े हो जाए रण मे
उसे तुम अपना क्यों कहते हो
निःसंकोच उतरो रण मे
यह युगों-युगों का युद्ध होगा
एक पग भूमि के लिए,
भाई-भाई के विरुद्ध होगा ।
यह संताप छोड़ो पार्थ
धर्मराज का धर्म युद्ध होगा ।
वीरों के तरकश से, तीरों का बर्षात होगा ।
छलेगा उससे अहंकार और घमण्ड का नाश होगा
अधर्म से लड़ने वाले विव्दानों का भी संहार होगा

– रानी कुमारी

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