
कहाँ मनुष्य है कि जो
उमीद छोड़कर जिया,
इसीलिए अड़ा रहा
कि तुम मुझे पुकार लो!
– हरवंश राय बच्चन
उत्तर छायावाद युग के कवि हरिवंश राय बच्चन आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जीतने की अपने शुरुआती दौर मे रहे हैं। उनकी रचनाएं पाठकों के मन में एक विशेष स्थान रखती है। मधुशाला’, ‘मधुकलश’, ‘मधुबाला’ जैसी काव्य रचनाएं उनकी लेखनी के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के बाबू पट्टी गांव में जन्मे हरिवंश जी को स्कूल के दिनों से ही लिखने का शौक़ था।

‘बच्चन’ सरनेम कैसे मिला ?
वैसे तो हरवंश जी का पूरा नाम ‘हरिवंश राय’ था लेकिन घर में उनके माता – पिता और भाई – बहन उन्हें प्यार से ‘बच्चन’ कह कर पुकारते थे। आगे जाकर उन्होंने ने इसे अपने नाम में जोड़ लिया। हरिवंश राय बच्चन जी का पहला काव्य-संग्रह ‘तेरा हार’ 1932 में प्रकाशित हुआ लेकिन उन्हें ख्याति और प्रसिद्धि अपने दूसरे काव्य-संग्रह ‘मधुशाला’ से मिली, जो 1935 में प्रकाशित हुई।
मदिरालय जाने को घर से
चलता है पीनेवाला,
‘किस पथ से जाऊँ?’ असमंजस
में है वह भोलाभाला,
अलग अलग पथ बतलाते सब
पर मैं यह बतलाता हूँ –
‘राह पकड़ तू एक चला चल,
पा जाएगा मधुशाला
– हरिवंश राय बच्चन
कैसे हरिवंश जी ने कवियों को दिलाया सम्मान
ये किस्सा उस वक्त का है, जब हरिवंश जी की ‘मधुशाला’ से लेकर ‘मधुकलश’, ‘मधुबाला’ जैसी काव्य रचनाएं लोगों के दिलों-दिमाग पर अपना जादू चला रही थी। उन्हीं दिनों हरिवंश जी एक कवि सम्मेलन में गए थे। प्रोग्राम शाम को शुरू होना था। सभी कवि सम्मेलन में पहुंच गए थे लेकिन हरिवंश राय बच्चन जी ने पहुंचते ही गुस्से में काव्य पाठ करने से इंकार कर दिया। उनका कहना था कि जब टेंट-माइक वाले को पैसे मिलते हैं तो कवि को क्यों नहीं? जबकि कवियों की वजह से ही महफिल सजती है, वरना कवि सम्मलेन का क्या कोई मतलब नहीं है ? उनकी इस बात को सभी ने सर्व सम्मति से स्वीकार किया और तब से सभी कवियों को उनके मेहनताने का इनाम मिलना शुरू हुआ।

शोध एंव लेखन – बसुन्धरा कुमारी