“मंजिल उन्हीं को मिलती है,
जिनके सपनों में जान होती है,
पंख से कुछ नहीं होता,
हौसलों से उड़ान होती है।”
-डॉ. अब्दुल कलाम
भारतीय क्रिकेट जगत में कई चमकते सितारों ने खेल प्रेमियों के दिल में अपनी जगह बनाई है। उन्हीं सितारों में एक नाम राहुल द्रविड़ का है। क्रिकेट में ‘द वॉल’ के नाम से प्रसिद्ध राहुल उन चुनिंदा बालेबाजों में रहे जिसके क्रीज पर आते ही फैंस को ये भरोसा हो जाता की अब इंडिया टीम की विकेट नहीं गिरेंगी। 11 जनवरी 1973 को मध्य प्रदेश के इंदौर में जन्मे राहुल को बचपन से क्रिकेट खेलना का शौक़ था। लेकिन दिलचस्प बात ये भी है की वह अपने स्कूल के दिनों में स्टेट हॉकी टीम का भी हिस्सा रहे थे। राहुल द्रविड़ ने टीम इंडिया में बतौर दाएं हाथ के बल्लेबाज के रूप में अपने क्रिकेट कैरियर की शुरुवात की और एसके साथ ही कई मौकों पर विकेटकीपिंग और स्पिनर की भी भूमिका निभाई। उन्होंने टीम इंडिया के मुख कोच के रूप में भी अपना योगदान दिया। जिसमें भारतीय टीम ने साल 2024 में टी20 वर्ल्ड कप अपने नाम किया।

जैमी से द वॉल बनेनें की कहानी
राहुल द्रविड़ के पिता, शरद द्रविड़, जैम और प्रिज़र्व बनाने वाली एक कंपनी में काम करते थे, इसलिए उन्हें सबसे पहला उपनाम ‘जैमी’ मिला था। राहुल द्रविड़ को ‘द वॉल’ नाम ऐड शूट के दौरान मिला था। यह ऐड शूट साल 1997-98 में रिबॉक के लिए ऐड एजेंसी लियो ब्रूनेट ने कराया था। इस ऐड में सभी खिलाड़ियों को एक उपनाम देना था, जो उनके प्लेइंग स्टाइल से मैच करता हो। राहुल द्रविड़ को यह नाम इसलिए दिया गया क्योंकि वे पिच पर बल्लेबाज़ी के दौरान विरोधी गेंदबाज़ों के सामने दीवार की तरह खड़े हो जाते थे, जिन्हें आउट करना गेंदबाज के लिए नामुमकिन भरा कार्य हो जाता था।

धैर्य, विनम्रता और कड़ी मेहनत है राहुल के तीन शस्त्र
राहुल द्रविड़ ने अपने जीवन में कभी धैर्य नहीं खोया। जब भी क्रीज पर आउट होते थे तो बड़ी शालीनता के साथ इसे स्वीकार करते और अपनी बारीकियों पर ध्यान देते थे। जब कभी उनके बल्लेबाजी की सराहना होती तो वो इसे बड़ी विनम्रता से स्वीकार करते। उनमें एक खास बात ये है की वो खुशी में ना ज्यादा खुश होते और ना तो दुख में ज्यादा दुखी। हमेशा कड़ी मेहनत और अनुशासन का पालन करने के कारण ही राहुल द्रविड़ युवा पीढ़ी के लिए एक सर्वश्रेष्ठ उधाहरण हैं।
शोध एवं लेखन : बसुन्धरा कुमारी