
तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो
तुम को देखें कि तुम से बात करें
-फ़िराक़ गोरखपुरी
शब्दों में तिलिस्म, मोहब्बत, इबादत, हिफाजत को एक सूत्र में बांधती, अदब के शायरों की अंजुमन में शुमार एक नाम है फ़िराक़ गोरखपुरी। एक मशहूर उर्दू शायर, लेखक और साहित्यिक समालोचक फ़िराक़ साहब का असली नाम रघुपति सहाय था। जन्म 28 अगस्त, 1896 को उत्तरप्रदेश के गोरखपुर में हुआ। साहित्य की अंजुमन में एक और शाश्ववत नाम है, मुंशी प्रेमचंद (असल नाम – धनपत राय)। उपन्यास सम्राट प्रेमचंद का जन्म वाराणसी में हुआ था। साल 1916 से 1921 तक, अपने जीवन के महत्वपूर्ण पाँच साल प्रेमचंद जी ने गोरखपुर में व्यतीत किया। लेकिन आज यानि 26 दिसंबर 2024 को फ़िराक़ साहब और प्रेमचंद का ज़िक्र होने की वजह क्या है ? फ़िराक साहब 1960 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1968 में पद्म भूषण और 1969 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हुए। साथ ही उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान साहित्य के क्षेत्र में ‘प्रेमचंद स्मृति पुरस्कार’ भी प्रदान करती है। जब एक नाम के पीछे उपलब्धियों की लंबी कतार हो, फिर क्या पाना बाकी रह जाता है ? बाकी रह जाता है उस सम्मान, उस साहित्य और उस विरासत को सँजोने की चाहत। मजरुह़ सुल्तानपुरी साहब लिखते हैं की… “हमारे बाद अब महफ़िल में अफ़्साने बयाँ होंगे, बहारें हम को ढूँढेंगी न जाने हम कहाँ होंगे…”.

उत्तर प्रदेश की सरकारी फाइलों ने फ़िराक़ साहब और प्रेमचंद जी को फिर से जीवंत किया है। फ़िराक़ गोरखपुरी के जन्मस्थली गोरखपुर की महफ़िल में बहारों फूल बरसाओं जैसा… तराना गूंज उठा है। गोरखपुर नगर निगम को शहर की साहित्यिक धरोहर को सहेजने और उन पर पड़े धूल पर कपड़ा मारने की अब फुरसत मिली है। नगर निगम ने शहर के बेतियाहाता स्थित ‘मुंशी प्रेमचंद पार्क’ को ‘साहित्य पार्क’ के तर्ज पर विकसित करने का फैसला लिया है। सरकारी निर्देश के अनुसार यह पार्क उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद और शायर फ़िराक़ गोरखपुरी की स्मृतियों का केंद्र बनेगा।
आधुनिक तकनीक से जीवंत होंगी प्रेमचंद (धनपत राय) की रचनाएं
समाज को साहित्य और संस्कृति से रूबरू कराने के लिए सरकार ने एक पहल की है। उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रेमचंद की कालजयी रचनाओं, उनके पात्रों और उनके जीवन को आधुनिक तकनीक से प्रदर्शित करने पर काम शुरू कर दिया है। साल 1916 से 1921 तक, अपने जीवनकाल का महत्वपूर्ण पाँच साल प्रेमचंद ने गोरखपुर में व्यतीत किया था। गोरखपुर की भूमि उनकी अमर रचनाओं की साक्षी रही है। भविष्य अपने विद्वान, विचारक और विलक्षण प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व को जरूर याद रखे, युवा पीढ़ी रील की दुनिया से इतर रियल लाइफ में घट रही समाज की सच्चाई और साहित्य के सागर में डुबकी लगाए, तब कहीं धरोहरों को सहेजने का उद्देश्य पूर्ण होता दिखाई पड़ेगा।
शोध एवं लेखन – अभिनंदन द्विवेदी