कविता: सन्नी सिन्हा (युवा साहित्यकार)
ऐ मानव तू जाग!
नए साल का नया सवेरा,चीख-चीख कर पुकार रहा है,
युवा तेरे यौवन को ललकार रहा है,
तुझे बार-बार हुंकार रहा है………..
ऐ मानव तू जाग!
तू कर क्या रहा है ?
थू है तेरे संस्कारों पर,जो तू कर पापियों का सत्कार रहा है,
थू है तेरे शब्दों पर,जो तू कर दुर्व्यवहार रहा है,
थू है तेरे ज्ञान पर,जो तेरे होते हुए फैल अज्ञानता का अंधकार रहा है……..
ऐ मानव तू जाग!
तेरे कर्मों से मच जग में हाहाकार रहा है,
तेरे कारण कई घरों में उठ चीत्कार रहा है…….
ऐ मानव तू जाग!
तुझे देख-देख मेरा हॄदय संत्रस्त हो रहा है,
मेरा तन विकल हो रहा है,
ये कविमन बार-बार रो रहा है……..
ऐ मानव तू जाग!
माना !
माना कि कल और आज में सिर्फ़ उन्नीस-बीस का फांसला रहा है,
पर,फांसला तो रहा है,
बदलाव तो रहा है,
ऐ मानव!तू कब बदल रहा है,
ऐ मानव तू जाग!
नए साल का आसमां,नया सूरज,नया चाँद,चीख-चीख कर पुकार रहा है………
ऐ मानव तू जाग!
नए साल का नया सवेरा,चीख-चीख कर पुकार रहा है…………
-सन्नी की कलम से